Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
-
wwwwwwwwwwwwwww
dawnwwwm
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
‘गोयमा ! जेगं सिद्धा संखे जर पं. पचे प.एणं विसति तेणं सिद्धा कतिसंचिया, जेणं .. सिद्धा एक्कएणं पासणणं पवितंति तेणं मिटा अञ्चत्तव्यग संचिपारि ॥ से तेगटेणं . गोयमा ! जाव अव्व सव्वग संचिषावि ॥ ९॥ सिणं भंते ! जेरइयाणं कइसचि. याणं अफइस चियाणं अवतव्यग संचियाणय कयर २ जाव विसे न.हियावा? गोयमा! सम्बत्योधा जर इया अब नव्ग सं चया, कतिमचिया संखेजगुगा, अकति संचिया असंखेजगुगा ॥ एवं एगिंदियवजागं जाच वेमाणियाणं अप्पाबहुगं एगिदियाणं
णत्यि अपाबहगं ॥ एएनणं भंते ! सिद्वाणं व तिसंचिकाणं अन्य सवग संचियाणय हैं ? अहो गोनय ! मोद्धरुपात योग काले हैं वे कति संचित , और जो एक प्रवेश करते हैं। वे प्राक्कय मारन . अहो गौतम ! इसलिय ऐसा कहा गया है यारत् प्रवक्तव्य संचित :. ॥ ९ ॥ अहो । मान् ! कति चिन, अनि सोत व अक्तव्य मंत्रित रिकी में से कोन किन मे अलावा यात् शिपाधि ? तो गौ ! ब थडे की प्रतिव्यक्ति हैं इस मे कति मंचित संख्यात गुने इस मे अनिचित संपन गर्ने एमे ही एक न्द्रा छ डकर वैमानिक पर्यंत अल्पाबहुत जानना. एकेन्द्रिय की अल्लाहुल नहीं है क्यों की उस में एक ही बोल पाता है. अहो भावन् ! इस कति संचित
*प्रकाशक-राजावादर लाला सुवदनमहायजी ज्वालापसाइजी*
भावार्थ