Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावाथ
+3 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जात्र वैमाणिया ॥ ३ ॥ रइयाणं भंते ! किं आतोवकमेणं उव्वहंति, परोवकमेणं उन्हंति, णिरुवकमेण उव्वहंति ? गोयमा ! णो आतोवक्कमेणं उव्वहंति, जो परोवकर्मणं उव्वहंति, णिरुवक्कमेण उव्वर्हति ॥ एवं जाव थणियकुमारा | पुढवीकाइया जाव मणुस्सा तिसु उव्वहंति । सेसा जहा णेरइया णवरं जोइसिया बेमाणिया चयंति॥४॥ रइयाणं भंते ! किं आयड्डीए उववजंति, परडीए उबवजंति ? गोयमा ! आयड्डीए उववजंति णो परिड्डीए उववज्जति ॥ एवं जाव
उत्पन्न होवे कालकसुरिया की तरह, ऐसे ही वैमानिक पर्यंत जानना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! नारकी क्या स्वतः के उपक्रम से उद्वर्तते हैं अन्य के उपक्रम से उद्वर्तते हैं अथवा उपक्रम विना उद्वर्तते हैं ? अहो [गौतम ! स्वतः के उपक्रम से नारकी नहीं उद्वर्तते हैं परके उपक्रम से नारकी नहीं उद्वर्तने हैं; परंतु निरुप क्रम से नारकी उद्वर्तते हैं; ऐसे ही स्वनित कुमार पर्यंत कहना. पृथ्वीकाया यावत् मनुष्य ( स्वतः के उपक्रम से उद्वर्तते हैं. अन्य के उपक्रम से भी उगते हैं और frerna से भी उद्वर्तते हैं, शेष सब नारकी जैसे कहना में ज्योतिषी व वैमानिक उद्वर्तन के स्थान चवना कहना ||४|| अहो भगवन् ! क्या नारकी आत्मऋद्धि से उत्पन्न होते हैं, या अन्य की ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! आत्मऋद्धि से उत्पन्न होते हैं परंतु अन्य की ऋद्धि से नहीं उत्पन्न होते हैं. ऐसे ही
* प्रकाशक- राजांबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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