Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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वेमाणिया ॥ ५ ॥ णेरइयाणं भंते ! कि आइड्डीए उव्वदृति, परिडीए उव्वटंति ? गोयमा ! आइडीए उन्वर्टति, णो परिवीए उव्वदृति, एवं जाव वेमाणिया, णवरं जोइसिया वेमाणिया चयंतीति अभिलावो ॥६॥ णेरइयाणं भंते ! कि आयकम्मणा उववजंति परकम्मणा उववजंति ? गोयमा ! आयकम्मणा उववजंति, णो परकम्मणा उववजंति; एवं जाव वेमाणिया ॥ एवं उबट्टणा दंडओ ॥ ७ ॥ णेरइयाणं भंते ! कि आयप्पओगेणं उववजंति परप्पओगेणं उपवजंति ? गोयमा ! आयप्पओगेणं
ago पंचमांग विवाह पणत्ति ( भगवती ) सूत्र
880 वीसबा शतक का दशवा उद्देशा 988
भावाथ
मानिक पर्यंत कहना ॥ ५॥ अहो भगवन् ! नारकी क्या आत्मऋद्धि (आत्म वल) से उद्वर्तते हैं या परऋद्ध से उर्तत हैं ? अहो गौतम ! नारकी आत्मक्रोध से उद्वर्तते हैं परंतु अन्यकी ऋद्धि से नहीं उद्वर्तते हैं. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत चौवीस दंडक का जानना. विशेष में ज्योतिषी वैमानिक को चवनाई कहना ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! क्या नारकी स्वतः के कर्म से उत्पन्न होते हैं अन्य के कर्म से उत्पन्न । होते हैं ? अहो गौतम ! नाग्की स्वतः के कर्म से उत्पन्न होते हैं परंतु अन्य के कर्म से नहीं उत्पन्न होते हैं. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत जानना. ऐसे ही उद्वर्तने का भी दंडक कहना ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! क्या नारकी स्वतः के प्रयोग से उत्पन्न होवे यावत् परप्रयोग से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! नारकी स्वतः ।
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