Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ ।
+ अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
इह चेइयाई बंद: २ ता, जंघाचारणस्सणं गोयमा ! उ एवइए गतिचिसए पण्णत्ते ॥ १० ॥ सेणं तस्स ठाणस्स अणालोइय पडिक्कते कालं करेइ णत्थि तस्स आराहणा | सेणं तस्स ठाणस्स आलोइय पडिक्कते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ बसिइमस्स णवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २० ॥ ९ ॥
जीवाणं भंते ! किं सोवकमाउया णिरुवक्कमाउया ? गोयमा ! जीवा सोवकमाउयावि णिरुवकमाउयावि ॥ १ ॥ रइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! णेरड्या को सोवकमाउया,
गुणानुवाद करे. अहो गौतम ! जंघाचारण का ऊर्ध्व गति का इतना विषय कहा है. ॥ १० ॥ वह उस { स्थान की आलोचना प्रतिक्रमण किये विना काल करें तो उस को उसकी आराधना नहीं है और आलो चना प्रतिक्रमण करके काल करे तो उस को उस स्थान की आराधना होती है. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह वीसवा शतक का नववा उद्देशा संपूर्ण हुबा ॥ २० ॥ ९ ॥
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नववे उद्देशे में चारण का कथन किया वे सोपक्रम आयुष्य वाले होते हैं. इस लिये आगे सोपक्रम निरूपक्रम का कथन करते हैं. अहो भगवन् ! क्या जीव सोपक्रम आयुष्य वाले हैं. या निरुपक्रम आयुष्य वाले हैं ? अहो गौतम ! जीव सोपक्रम आयुष्य वाले हैं और निरुपम आयुष्यवाले भी हैं. ॥ १ ॥
१ काल को अप्राप्त अग्नि विषादि से आयुष्य निर्जरे वह सोपक्रम इस से विपरीत निरुपक्रम.
* प्रकाशक - राजबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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