Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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20 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सत्र 486
सेणं इओ एगेणं उप्पाएणं रुयगवरेदीवे समोसरणं करेइ, करेइत्ता चेइयाइं वंदइ, वंदइत्ता तओ पडिणियत्तमाणे वितिएणं उप्पाएणं णंदीसरवरे दीवे समोसरणं करेइ २ त्ता, तहिं चेइयाइं वंदइ २ ता इहं हव्वमागच्छइ, इहं चेइयाइं बंदइ ॥ जंघा
२४९१ चारणस्सणं गोयमा ! तिरियं एवइए गइविसए पण्णत्ते ॥९॥ जंघाचारणस्सणं भंते! । उ8 केवइए गतिविसए पण्णन्ते ? गोयमा ! सणं इओ एंगेणं पंडगवणे समोसरणं करेइ २ त्ता, तहिं चेइयाइं वंदइ २ त्ता तओ पडिणियत्तमाणे वितिएणं उप्पाएणं
णंदणवणे समोसरणं करेइ, करेइत्ता तहिं चेइयाइं वंदइ २ त्ता इह मागच्छइ २ त्ता ज्ञानी के ज्ञान का गुणानुवाद करे, वहां से पीछे आते दूसरे उत्पात में आठवा नंदीश्वर वर द्वीप में आवे वहां समवसरण कर के ज्ञानी के ज्ञान का गुणानुवाद करे और वहां से यहां आवे यहां आकर फीर ज्ञानी के ज्ञान का गुणानुवाद करे. अहो गौतम ! जंघाचारण का यह तीर्छा विषय कहा है. ॥ ९ ॥ अहो भगवन् ! जंघाचारण का ऊर्ध्व कितना गति विषय कहा ? अहो गौतम ! एक उत्पात से यहां से उडकर पंडगवन में विश्राम करे, वहां ज्ञानी के ज्ञान का गुणानुवाद करे, वहां से पीछा आते दूसरे उत्पात, में नंदनवन में आने वहां ज्ञानी के ज्ञान का गुणानुवाद कर के यहां आवे और यहां ज्ञानी के ज्ञान का ।
-वीसवा शतक का नवधा उद्देशा 182
भावार्थ
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