Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२०
हणा ॥ सेणं तस्स ठाणस्स आलोइय पडिक्कंते कालं करेइ अस्थि तस्स आराहणा ॥ ६ ॥ से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जंघाचारणा ? जंघाचारणा गोयमा ! तस्सणं अट्टमं अट्टमेणं अणिक्खित्तेणं तओकम्मेणं अप्पाणं भावमाणस्स जंघाचारणलडी णामं लद्धी समप्पज्जइ, से तेणट्रेणं जाव जंघाचारणां जंघाचारणा ॥ ७ ॥ जंघाचारणस्सणं भंते ! कहं सीहागई, कहं सीहे गइविसए पण्णत्ते ? गोयमा ! अयण्णं जंबुहीवेदीवे एवं जहेव विजाचारणस्स, णवरं तिसत्तखुत्तो अणुपरियादृत्ताणं हव्वमागच्छे, ज्जा, जंघाचारणस्सणं गोयमा ! तहा सीहागई तहा सीहेगतिविसए पण्णत्ते सेसं तंचेव ॥ ८ ॥ जंघाचारणस्सणं भंते ! तिरियं केवइए गतिविसए पण्णत्ते ? गोयमा!
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अनबादक-घालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी.
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* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
उस को आराधना नहीं होती है और आलोचना प्रतिक्रमण कर काल कर जावे तो आराधना होती है ॥ ६॥ अहो भगवन् ! जंघाचारण क्यों कहा ? अहो गौतम ! तेले २ का निरंतर तप करके आत्मा को भावने से जंघाचारण नामक लब्धि प्राप्त होती है, इस से जंघाचारण कहाये गये हैं ॥७॥ अहो भगवन् ! जंघाचारण की कैमी शीघ्रगति व कैसा शीघ्रगति विषय है ? अहो गौतम ! जैसे विद्याई चारण का कहा बैसे ही कहना विशेष में इक्कीस वक्त फीर कर आजावे. अहो गौतम ! जंघाचारण की ऐसी शीघ्रगति और शीघ्रगति विषय है ॥ ८॥ अहो भगवन् ! जंघा. चारण का तीर्छा कितना विषय कहा है ?अहो गौतम : वह एक उत्पात से तेरवा रुचकवर द्वीप, में समवसरण करे वहां