Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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दीवं तिहिं अच्छिराणिवाएहिं तिक्खुत्तो अणुपरियाहत्ताणं हव्वमागच्छेजा; विजाचारणस्सणं तहा सीहागई तहा सीहे गइविसए पण्णत्ते ॥३॥ विजाचारणस्सणं भंते ! तिरियं केवइयं गतिविसए पण्णत्ते ? गोयमा ! सेणं एगेणं उप्पाएणं माणसुत्तरे पव्वए समोसरणं करेइ, करेइत्ता तहिं चेइयाई वंदइ, वंदइत्ता वितिएणं उप्पाएणं गंदिस्स रवरदीवे समोसरणं करइ, करेइत्ता तहिं चइयाई वंदइ, वंदइत्ता तओ पडिणियत्तइ,
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468 अनुवादक-बालब्रह्मचरी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
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'म जैसी देवता की शीघ्रगति कही वैसी शीघ्रगति विद्याचारण मुनि की होती है. और इनना ही उम की
गति का विषय कहा है ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! विद्याचारण का कितना ती गति विषय कहा है ? अहो गौतम ! विद्याचारण एक ही उपपात में यहां से उडकर अढाइ द्वीप की मर्यादा करनेवाला मानुषोत्तर पर्वत पर समवसरण करे-विश्राम.ले. वहां विश्राम लेकर चैत्यवंदन कर अर्थात् जिनेन्द्र के कथनानुमार सब अवलोकन करके जिनेन्द्र के ज्ञान का गुणानुवाद करे कि धन्य है आप का ज्ञान. आपने फरवाग वैसा ही है + इस तरह वहां चैत्य वंदन करके दूसरे उपपात में आठवा नंदीश्वर द्वीप पर
+ यहां (वंदइ) शब्द का अर्थ गुणानुबाद ही होता है, न कि नमस्कार करना. नमस्कार करने के लिये बंदइ + णमंसइ ऐसे पाठ दीये जाते हैं.
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.