Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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38 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 28*
चारणाय जंघाचारणाय ॥ १ ॥ से केणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ-विजाचारणाय ? विजाचारणाय गोयमा ! तस्सणं छटुंछट्टेणं अणिक्खित्तेणं तओकम्मेणं विजाएसु उत्तरगुणलडिखममाणस्स विजाचारणलद्धी णाम लही समुप्पज्जइ, से तेणटेणं जाव विजाचारणा, विजाचारणा ॥ २ ॥ विजाचारणस्सणं भंते ! कहं सीहागई कह सीहेगइविसए पण्णत्ते ? गोयमा अयण्णं जंबूद्दीवेदीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं देवेणं महिढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेवत्ति कटु केवलकप्पं जंबुद्दीवं
भावार्थ
में गमन करे सो विद्याचारण और २ जंघा शक्ति विशेष से जो आकाश में गमन करे सो जंघा चारण ॥५॥ अहो भगवन् ! विद्याचारण क्यों कहा गया है ? अहो गौतम ! अंतर रहित छठ २ का तप में करने से, पूर्वगत श्रुत विशेष से उत्तरगुण पिंड विशुद्धादिक से विद्याचारण नामक लब्धि प्राप्त होवे इस से अहो गौतम ! विद्या चारण लब्धि कही ॥२॥ अहो भगवन् ! विद्याचारण की कैसी शीघ्र नि और
कैसा शीघ्रगति विषय है ? अहो गौतम ! एक लक्ष योजन का लम्बा चौडा इस जम्बूद्वीप को तीन to लाख सोलह हजार दो सो सत्ताइस योजन से कुच्छ अधिक परिधि है, उसे कोई महा ऋद्धि तर
यावत् महा ऐश्वर्यवंत देवता तीन चपटी बजाने जितनी देर में तीम वरूत प्रदक्षिणा देकर शीघ्र आजाता है.'
वीसवा शतक का नववा उद्देशा 488