Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जिणपरियाए तावइयाए संखेजाइं आगमस्साणं चरमतित्थगरस्स तित्थे अणुसिजिस्माइ ॥ १२ ॥ तित्थं भंते ! तित्थे तित्थंकरे तित्थे ? गोयमा! अरहा ताव णियमं तित्थंगरेति; तित्थे पुण चाउवण्णाइण्णे समणसंधे, तंजहा-समणा समणीओ सावगा सावियाओ ॥ १३ ॥ पवयणं भंते ! पवयणं पावयणं पवयणं ? गोयमा ! अरहा ताव णियमं पावयणी पवयणं, पुण दुवालसंगे गणिपिडगे, तंजहा-आयारो । जाव दिट्टिवाओ ॥ १४ ॥ जे इमे भंते ! उग्गा भोगा राइण्णा इक्खागा णाया
कोरवा एए अस्सि धम्मे ओगाहइ, ओगाहइत्ता अट्टविहं कम्मरयमलं पवाहिति २ त्ता भावार्थ की जितनी जिन पर्याय उतना संख्यात काल पर्यंत आगाभिक चरम तीर्थकर का तीर्थ रहेगा ॥१२॥ अहो
भगवन् ! तीर्थ को तीर्थ कहना या तीर्थकर को तीर्थ कहना ? अहो गौतम ! अरिहंत तीर्थ करनेवाले हैं. और साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका इन चारों वर्गों से आकीर्ण श्रमणसंघ. तीर्थ है ॥ १३ ॥ अहो ।
भगवन् ! शास्त्रों को प्रवचन कहना या शास्त्र कर्ता को प्रवचन कहना ? अहो गौतम ! अरिहंत प्रवचनी/3 86 हैं, क्योंकि वे शास्त्र के उपदेष्टा हैं और द्वादशांग गणिपिंडग ही प्रवचन हैं. जिन के नाम. आचारांग
यावत् दृष्टिवाद ॥ १४ ॥ अहो भगवनू ! जो उग्रकुलवाले, भोगकुलवाले, राजा के कुलवाले, इसाग के..
28- पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 38+
बीसवा शतक का आठवा उद्दशा 4.80