Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
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सेसं तंचैव जाव अणुत्तरविमाणाणं ईसिप्पभारास्य पुढवीए अंतरा समोहर समोइता अभविए घणवात तणुवात घणवातबलएसु तणुवातबलएसु वाउकाइयत्ताए उबजिस ॥ सेसं तंचेव जाव से तेणट्टेणं जाव उववजेज्जा ॥ सेवं भंते! भंतेत्ति ॥ बीसइमम्स छट्टो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २० ॥ ६ ॥ कविणं भंते ! बंधे पण्णत्ते ! गोयमा ! तिविहे बंध पण्णत्ते, तंजहा जीवप्पओग (वायुकाया का उद्देशा कहा वैसे ही यहां जानना विशेष में बीच में समोहणा करने का कहना यावत् । अनुत्तर विमान व ईषत्प्राग्भार पृथ्वी के बीच का वायुकाय मारणांतिक समुदात कर के घनवात तनुत्रात के घनवात वळय व तनुत्रात वलय में वायु कायापने उत्पन्न होने योग्य होवे; शेष वैसे ही मानना यात्रत् { इसलिये उत्पन्न होवे. अहों भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह बीमा शतका छठा उद्देशा समाप्त हुवा || २ || ६ ॥
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छठे देश में पृथिव्यादिक के आहार वक्तव्यता कही. कथन करते हैं. अहो भगवन् ! वंध के कितने भेद कहे हैं ?
अनुवादक बालब्रह्मचारी मान श्री अम लक ऋषिजी
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बंध होवे इस से आगे बंध का अहो गौतम ! बंध के तीन भेद कहे हैं.
आहार से
१ जीव प्रयोग बंध २ अनंतर बंध व ३ परंपरा बंध. मन प्रमुख व्यापार से जो बंध हो सो कर्मों का बंध होवे, वह जीव प्रयोग २ प्रथम समय में कर्म पुल का जो बंध वर्तता है वह अनंतर बंध और ३ द्वितीयादि ।
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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