Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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त्र
48 पचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 4882
4बंधे, अणंतरबंधे, परंपरबंधे ॥ १ ॥ णेरइयाणं भंते ! कइविहे बंधे पण्णत्ते ?
एवं चेव ॥ एवं जाव वेमाणिए ॥ २ ॥ णाणावरणिजस्सणं भंते ! कम्मस्स कइविहे बंध पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे बंधे ५० तंजहा-जीवप्पओग बंधे, अणंतर बंधे परंपरबंधे ॥ णेरइयाणं भंते ! णाणावरणिजस्स कम्मस्स कइविहे बंधे प०? एवं चेव ॥ एवं जाव वेमाणियस्स ॥ एवं जाव अंतराइयस्स ॥ ३ ॥ णाणावरणिजोदयस्सणं
भंते ! कम्मरस कइविहे बंधे प. ? गोयमा ! तिविहे बंधे पण्णत्ते एवं चेव ॥ एवं समय में जो कर्मपुद्गलों का बंध वर्तता है वह परंपरा बंध ॥ १ ॥ नरक मे लेकर वैमानिक पर्यंत चौवीस दंडक में तीनों प्रकार के बंध कहे हैं ॥२२॥ अहो भगवन् ! ज्ञानादरणीय कर्म के कितने बंध कहे हैं ? अहो गौतम ! तीन बंध कहे हैं. जीव प्रयोग बंध, अनंसर बंध, व परंपरा, बंध. अहो भगवन् ! नारकीको ज्ञानावरणीय कर्म के कितने बंध कहे हैं ? अहो गौतम ! उक्त तीनों बंध कहे हैं. वैसे ही वैमानिक पर्यंत जानना. जैसे ज्ञानावरणीय का कहा वैसे ही दर्शनावरणीय यावत् अंतराय का कहना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म के उदय के कितने बंध कहे हैं ? अहो गौतम ! ज्ञानावरणीय कर्म के उदयके तीन बंध कहे हैं. जीव प्रयोग बंध, अनंतरा बंध व परंपरा बंध. उक्त ज्ञानावरणीय कर्म के उदयके
480% वीसवा शतक का सातगा उद्देशा
भावाथ
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