Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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400 अनुवादक-यालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
भंते ! इमीसे रयणप्पभाएय सक्करप्पभाएय पुढवीए अंतरा समोहए समोहइत्ता जे भविए सोहम्मेकप्पे आउकाइयत्ताए उववजित्तए सेसं जहा पुढवीकाइयरस जाव में तेणटेणं; एवं पढमा दोच्चाणं अंतरा समोहओं जाव ईसिप्पभाराए उववाएयव्यो; एवं एएणं कमेणं जाव तमाए अहे सत्तमाए पुढवीए अंतरा समोहए स. जाव ईसिप्पभाराए उववाएयब्वो आउकाइयत्ताए ॥ ५ ॥ आउकाइयाएणं भंते ! सोहम्मीसाणाणं
सणंकुमारमाहिंदाणय कप्पाणं अंतरा समोहए समोहइत्ता जे भविए इमीसे रयणशर्कर प्रभा के बीच का अप्काय मारणांतिक समुद्धात से काल कर के सौधर्म देवलोक में अप्कायापने उत्पन्न होने योग्य होवे वह क्या पहिला उत्पन्न होवे और पीछे आहार करे अथवा पहिले आहार करके पछि उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे पृथ्वी काया की वक्तव्यता कही वैसे ही यहां कहना ऐमेही पहिली दूसरी नारकी के बीच का अप्काया की उत्पत्ति का कथन ईषत्माग्भार पृथ्वी पर्यंत कहना. और इसी क्रम से दूसरी तीसरी यावत् छठी सातवी के बीच का अपकाय का उत्पन्न होना ईषत्माग्भार पृथ्वी पर्यंत कहना. ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! सौधर्मईशान व सनत्कुमार माहेन्द्र देवलोक की बीच का अप्काया मारणांतिक समुद्धात से काल कर के इस रत्नप्रभा पृथ्वी में घनोदधि के वलय में उत्पन्न होने योग्य
*प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ