Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
नावार्थ
सोहम्मीसा सणकुमार माहिंदाणय कप्पाणं अंतरा समोहए समोहइत्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभा पुढवी पुढची का इयत्ताए उववज्जित्तए सेणं भंते! पुत्रि उववजित्ता पच्छा आहारज्जा सेसं तंचेव, जाव से तेणट्टेणं जाव णिक्खेवओ | पुढवीकाइयाणं भंते ! सोहम्मीसाणाणं संणकुमारमाहिंदाणय कप्पाणं अंतरा समोहए समोहइत्ता जे भवि सकरप्पा पुढवीए पुढवीकाइयत्ताए उपवजित्तर ॥ एवं चेत्र एवं जात्र अहे सत्तमाए उववायव्वो ॥ एवं सणकुमारमाहिंदाणं बंभलोगस्स कप्परस अंतरा समोह समोहइत्ता पुणरवि जाव अहे सत्तमा उववाएयव्वो । एवं बंभलोगस्स उत्पन्न होने योग्य अहो भगवन् ! सौधर्म शर्करप्रभा पृथ्वी
पृथ्वी काया मारणांतिक समुद्धात से कालकर के रत्नप्रभा पृथ्वी में पृथ्वीका पने होता वह क्या पहिले उत्पन्न होकर पछि आहार करे वगैरह पूर्वोक्त जैसे कहना. {ईशान व सनत्कुमार माहेन्द्र की बीचमें से पृथ्वीकाया मारणांतिक समुद्धात कर के इस पृथ्वीकाया पने उत्पन्न होवेतो वह क्या पहिले उत्पन्न होवे और पीछे आहार करे अथवा पहिले आहार करे और पीछे उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जैसे पूर्वोक्त कहा वैसे ही यहां जानना ऐसे ही नीचे • सातवी पृथ्वी तक कहना. इसी क्रम से सनत्कुमार माहेन्द्र व ब्रह्म देवलोक के बीच की पृथ्वीकाया का
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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