Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावाथ
403 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भंतेति ॥ वीसइमस्स सयस्य पंचमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २० ॥ ५ ॥ पुढवीकाइएणं भंते! इमीसे रयणप्पभाएय सकरप्पभाएय अंतरा समोहए समोह • णित्ता जे भविए सोहम्मेकप्पे पुढवीका इयत्ताए उववज्जित्तए, सेणं भंते ! किं पुि उववजित्ता पच्छा आहारेजा, पुत्रि आहारिता पच्छा उववज्जेजा, ? गोयमा ! पुविवा उववजित्ता एवं जहा सत्तरसमसए छहुद्देसए जाब से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ पुचिचा उववजेज्जा णवरं तेहिं संपाउंणिण्णा, इमेहिं आहारो भण्णइ, सेसं तचेत्र
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायत्री ज्वालाप्रसादजी ●
( अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह वीसवा शतक का पांचवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २० ॥ ५ ॥ पांचवे उद्देशे में पुद्गल परिणाम कहा, छठे उद्देशे में पृथ्वी आदि जीव परिणाम कहने हैं. अहो भगवन् { जो पृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभा व शर्कर प्रभा की बीच में मारणांतिक समुद्धात करके सौधर्म देवलोक में) पृथ्वी कायापने उत्पन्न होनेवाला होता है वह क्या पहिला उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है अथवा पहिला आहार करके पीछे उत्पन्न होता है ? अहो गौतम ! पहिला उत्पन्न होकर पीछे आहार करता है। ऐसा जो सतरहवे शतक के छठे उद्देशे में कहा यावत् अहो गौतम ! इसलिये ऐसा कहा गया है कि पहिले उत्पन्न होवे और पीछे आहार करे, विशेष में वहां संपाउण्ण कहा, और यहां पर आहार करना
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