Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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गोयमा ! अत्थेगइयाणं एवं सण्णाइवा, पण्णाइवा मणेइवा, वईइवा, अम्हेणं आहार माहारेमो ॥ अत्थेगइयाणं णो एवं सग्णाइवा जाव वईइवा अम्हेणं आहार माहारमो आहारेंति पुण ते ॥ तेसिणं भंते! जीवाणं एवं सण्णाइवा जाव वईइवा अम्हेणं इट्ठाणि? सद्दे इट्ठाणिढे रूवे, इट्टाणि? गंधे इट्ठाणि? रसे, इट्टाणि? फासे पडिसंवेदेमो? गोयमा ! अत्यंगइयाणं एवं सण्णाइवा जाव वाईइवा अम्हणं इट्टाणिटेसद्दे जाव इट्ठा णिटेफासे पडिसंवेदेमो अत्येगइयाणं णो एवं सण्णातिवा पण्णातिवा जाव वईतिवाअम्हणं
इट्ठाणिटे सद्दे जाव इट्ठाणिटे फासे पडिसंवेदेमो, पडिसंवेदेति पुणते।।तेणं भंते जीवाकिं भावार्थ संज्ञा, पन व बचन होता है कि हम आहार करते हैं और कितनेक को ऐसी सज्ञा, मन व वचन नहीं है.
परंतु वे आहार करते हैं. अहो भगवन् ! उन जीवों को क्या ऐसी संज्ञा, मन व वचन है कि हम इष्ट अनिष्ट शब्द इष्ट अनिष्ट रूप, इष्ट अनिष्ट गंध, इष्ट आनिष्ट रस व इष्ट अनिष्ट स्पर्श वेदते हैं ? अहो गौतम !
कितनेक को ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा यावत् वचन है कि हम इष्ट आनिष्ट रस यावत् स्पर्श वेदते हैं. और कितनेक १०० 30 को नहीं है यावत् वेदते हैं. अहो भगवन् ! वे जीवों क्या प्राणातिपात का सेवन करते हैं ? अहो गौतम !
कितने अविति जीव प्राणातिपात का सेवन करते हैं यावत् मिथ्यादर्शन शल्य का सेवन करते हैं, और
पंचमांग विवाह पणति (भगवती) सूत्र 40
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बीसका शतक का पहिला उद्दशा 42
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