Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
+ अनुवादकः बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
कविणं भंते! इंदिय उचचए पं ? गोयमा ! पंचविहे इंदिय उच्चए प० तंजहा सोइंदियउवचए एवं वितिओ इंदियउद्देसओ णिरवसेसो भाणियन्त्रो जहा पण्णत्रणाए ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ भगवं गोयमे जाव विहरइ ॥ बीस मस्स चउत्थो ॥ २० ॥ ४ ॥
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परमाणुपोग्गलेणं मंते ! कइत्रण्णे, कइगंधे, कइरसे, कइफासे ? गोयमा ! एगवण्णे गगंधे, एगरसे, दुफासे || जइ एग वण्णे-सिय कालए सिय णीलए, सियलोहिए,
अहो भगवन् ! इन्द्रिय उपचय के कितने भेद कहे हैं ?
अदो गौतम ! इन्द्रिय उपचय के पांच भेद कहे हैं. श्रोत्रेन्द्रिय उपचय ऐसे ही पनत्रणा का दूसरा उद्देशा जो कहा है वह यहां पर निरवशेष कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यों कहकर भगवान् गौतन विचरने लगे. यह बीसत्रा शतक का चौथा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २० ॥ ४ ॥
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चौथे उद्देशे में इन्द्रिय का उपचय कहा वह परमाणु से होता है इसलिये आगे परमाणु का स्वरूप कहते { हैं. अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल में कितने वर्ण, गंध, रम व स्पर्श हैं ? अहो गौतम ! परमाणु पुद्गल { में एक वर्ण, एक गंध. एक रस व दो स्पर्श कहे हैं. यदि एक वर्ण क्षेत्रे तो क्वचित् काला, क्यचित् नीला,
* प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी *
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