Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मांगविवाह पण्णानि ( भगवती ) सूत्र 48+
दसणे ४, आभिाणबाहियणाणे जाव विभंगणाणे, आहारसण्णाए ४, ओरालिय सरीरे ५ , मणजोगे ३ सागारोवओगे, अणागारोवओगे, जेयावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते णण्णत्थ आताए परिणमंति ? हंता गोयमा ! पाणाइवाए जाव सव्वे ते णण्णत्थ 4.२४३१ आताए परिणमंति ॥ १ ॥ जीवेणं भंते ! गम्भं वक्कममाणे कइवण्णे कइगंधे एवं जहा वारसमसए पंचमुद्दसए जाव कम्मओणं जए णो अकंम्मतो विभत्तिभावं परिणए
सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ वीसइमस्स तत्तिओ॥ २० ॥ ३ ॥ कृष्ण लेश्या यावत् शुक्ल लेश्या, समदृष्टि ३ चक्षु दर्शन ४ आभिनिवाधिक ज्ञानी यावत् विभंग ज्ञानी, आहार, भय, मैथुन व परिग्रह ऐसी चार मंज्ञा, उदारिक, वैक्रेय, आहारक तेजस व कार्माण ऐसे पांच शरीर, मन, वचन व काया ऐसे तीन योग, और ऐसे अन्य भी क्या आत्मा विना अन्य को a. नहीं परिणमते हैं ? हां गौतम ! आत्मा विना अन्य को नहीं परिणमते हैं. ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता जीव को कितने वर्ण, गंध, रस, वगैरह जैसा बारहवे शतक में पांचवे उद्देशे में कहा यावत
पांच वर्ण, दो गंध पांच रस व आठ स्पर्श परिणमते हैं. कार्माण शरीर की अपेक्षा से जीव अनेक भाव 6 से परिणमता है, परंतु कर्म रहित होने से विभक्ति भाव पने नहीं परिणमता है. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं, यह बीसवा शतक का तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा. ॥ २० ॥ ३ ॥
42+वीसना शतक का तीसरा उद्दशा 48
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