Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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- अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
लोयंचेव उग्गाहित्ताणं चिट्ठति. एवं जाव योग्गलस्थिकाए ॥ २ ॥ अहे लोएणं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवइयं ओगाढे ? गोयमा ! साइरेगं अडं ओगाढे, एवं एएणं अभिलावेणं जहा विइयसए जाव ईसिप्पन्भाराणं भंते ! पुढवी, लोयागासस्स किं
२४२६ संखेजइ भाग ओगाढा पुच्छा, गोयमा ! णो संखेजइ भागं ओगाढा, असंखेजइ भार्ग ओगाढा, णो संखेजइ भागे ओगाढा, णो असंखेनइ भागे ओगाढा, णो सव्वं लोयं ओगाढा, सेसं तंचेव॥३॥ धम्मत्थिकायस्सणं भंते ! केवइया अभिवयणा प. ? गोयमा ! अणेगा अभिवयणा पण्णता तंजहा-धम्मेतिवा धम्मत्थिकाएइवा, को स्पर्श कर रही हुई और लोक को अवगाह कर रही हुई है. ऐसे ही पुद्गलास्तिकाया तक जानना ॥२॥ अहो भगवन् ! नीचा लोक को धर्मास्तिकाया कितनी अवगाह कर रही है ? अहो गौतम ! साधिक आधी धर्मास्तिकाया अवगाह कर रही है. इस अभिलाप से जैसे दूसरे शतक में यावत् ईषत्माग्भार पृथ्वी लोकाकाश को क्या मंख्यानवे भाग से स्पर्शी हुई है वगैरह पृच्छा, अहो गौतम ! संख्यातवे , मग को स्पर्श कर नहीं रही है परंतु असंख्यातवे भाग को स्पर्श कर रही है. संख्यात भाग व असं ख्यात भाग लोक को अवगाह कर नहीं रही है, शेष पूर्वोक्त जैसे कहना ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! धर्मास्तिकाया को कितने नाम से बोलाई जाती है ? अर्थात् धर्मास्तिकाया के कितने नाम करें! अहो।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी मालाप्रसादजी.
भावार्थ
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