Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमान विवाह पण्णत्ति ( भमवती) सूत्र dagi
* साहियावा ? गोयमा !सम्बत्योवा पंचिंदिया, चउरिदिया विससाहिया, तेइंदिया बिसे ४. साहिया, वेइंदिया विसेसाहिया ॥ सेवं भंते भंतेत्ति, जाव विहरइ ॥ वीसइमरस
सयस्सय पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १०॥ १॥ • कइणं भंते ! आगासे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे आगासे पण्णत्ते, तंजहा-लोआ
गासेय अलीयागासेय ॥ १ ॥ लोआगासेणं भंते ! किं जीवा जीवदेसा एवं जहा है. वितियसए अत्थिउद्देसए तहचेव इहवि भाणियव्वं, णवरं अभिलावो जाव धम्मत्थि
कारणं भंते ! के महालए पण्णते ? गोयमा ! लोएलोयमेत्ते, लोयप्पमाणे लोयफुडे से चतुरैन्द्रिय विशेषाधिक इस से तेइन्द्रिय विशेषाधिक इस से वेइन्द्रिय विशेषाधिक. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यानत् विचरने लगे. यह बीसवा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥२०॥२॥
पहिले उद्देशे में द्विइन्द्रियादिक कहः वे आकाश के आधार मे होते हैं. इसलिये आकाश का स्वरूप कहते हैं. अहो भगवन ! आकाश के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! आकाश के दो भेद कहे हैं. 5लोकाकाश और २ अलोकाकाश ॥१॥ अहो भगवन् ! लोकाकाश में क्या जीव जीव देश या जीव
प्रदेश हैं वगैरह जैसे द्वितीय शतक के अस्तिकाया उद्देशे में कहा वैसे ही यहां कहना. विशेष में अहो % भगवन् ! धर्मास्तिकामा कितनी बडी कही है ? अहो गौतम ! लोक में लोक मात्र, लोक प्रमाण, लोक} |
भावार्थ
पासवा शतक का दू. रा. उद्देशा 98
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