Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
4. अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
भावार्थ |
जो इट्टे समट्ठे ॥ पडसंवेदेति पुणते ॥ ठिई जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारसवच्छराई, सेसं तंचेत्र ॥ एवं तेइंदियाणएवि एवं चउरिंदियाणएवि, णाणत्तं, इंदिसे, ठितीएय, सेसं तंचेत्र, ठिती जहा पण्णवणाए ॥ ४ ॥ सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच पंचिंदिया एगयओ साहारणसरीरं, एवं जहा वेइंदियाणं, णवरं छलेस्सा दिट्ठी तिविहा, चत्तारिणाणा, तिण्णि अण्णाणा भयणाए, तिविहा जोगा ॥ तेसिणं भंते! जीवाणं एवं सण्णाइवा पण्णाइवा जाव वईइवा, अम्हेणं आहार माहारेमो ? यावत् कह सके कि हम इष्ट अनिष्ट रस यावत् स्पर्श अनुभवते हैं. मात्र वे वेदते हैं. उन की स्थिति जघन्य अंतर्मूहूर्त उत्कृष्ट १२ शेष पूर्वोक्त जैसे कहना. तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय का भी वैसे ही कहना परंतु स्थिति व इन्द्रिय में विशेषता है. तेइन्द्रिय में तीन व चतुरेन्द्रिय में चक्षु, घ्राण, रसना व स्पर्श ऐसी चार इन्द्रियों हैं. स्थिति तेइन्द्रिय की ४९ दिन की व चतुरोन्द्रिय की छपास की. वगैरह जैसे पचवणा में कहा वैसे ही जानना ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! चार पांच पंचेन्द्रिय मीलकर क्या साधारण शरीर बांधे फीर आहार करे, परिणमात्रे व शरीर बांधे ? अहो गौतम ! जैसे वेइन्द्रिय का कहा वैसे ही यहां जानना विशेष में छ लेश्या, तीन दृष्टि, चार ज्ञान, तीन अज्ञान की भजना व तीन योग हैं. अहो भगवन् ! उन जीवों को क्या संज्ञा, मन यात्रतू वचन हैं कि हम आहार करते हैं ? अहो गौतम ! कितनेक को ऐसी
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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