Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सिय भंते ! पुढवीकाइया अप्पासवा अप्पकिरिया, अप्पवेयणा अप्पणिजरा ? हंता . सिया॥ एवं जाव मणुस्सा ॥ १८ ॥ वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा असुरकुमारा ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ एगूणवीसहमस्स चउत्थो उद्देसो ॥ १९ ॥ ४॥ . अस्थिणं भंते!चरिमावि णेरइया परमाविणेरइया ?हता! अत्थि॥१॥से णूणं चरिमेहितो णेरइएहिंतो परमा णेरड्या महाकम्मतराए चेव, महाकिरिय तराए चेव महासवतराए चेव महावेयण तराए चेव, परमेहिंतो वा गैरइएहितो चरमा गेरइया अप्पकम्मतरा ही यावत् पृथ्वीकायिक क्या अन्य आश्रव, अल्प क्रिया, अल्प वेदना व अल्प निर्जरावाले 'द गौतम : पृथ्वी कायिक अल्प आश्रय, अल्स क्रिया, अल्प वेदना व अल्प निर्जराबाले है. से ही मनुष्य पर्यंत जानना ॥ १८॥ वाणव्यंतर ज्योतिषी वैमानिक का अमुर कुमार जैसे जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सब हैं, यह उनीसवा सतक का चौथा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १९ ॥ ४॥
चौथे उद्देशे में नरक का कथन किया पांचवे उद्देशे में भी उस काही कथन करते हैं. अहो भगवन् ! क्या नारकी चरिम (अल्प स्थितिवाले) हैं. और परम (महा स्थितिवाले) भी हैं ? हां गौतम !
नारकी अल्प स्थितिवाले भी हैं और महास्थितिवाले भी हैं ॥ १॥ क्या अल्प स्थितिवाले नारकी से 12महा स्थितिवाले नारकी महा कर्मवाले, महा क्रियावाले, महा आश्रनवाले व महा वेदनावाले हैं
पारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 48 अनुवादक-बालब्रह्मच
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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