Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
॥५॥ कहविहाणं भंते ! सबिदियणिवत्ती प• ? गोयमा ! पंचविहा सबिदिय णिन्वती ५० तंजहा सोइंदियणिवत्ती जाव फासिंदियणिवत्ती ॥ एवं जेरइया जाव थणियकुमारा । पुढवीकाइयाणं पुच्छा ? गोयमा! एगा फासिदियणिवत्ती प. एवं जस्स जइ इंदियाणि जाव वेमाणियाणं ॥ ६॥ कइविहाणं भंते ! भासाणिबत्ती प• ? गोयमा ! चउन्विहा भासाणिवत्ती पं० तंजहा-सञ्चभासाणिवत्ती मोसमासाणिवत्ती, सच्चामोसमासाणिवत्ती, अचामोसभासाणिवत्ती ॥ एवं एगिभगवन् ! कितनी सर्वेन्द्रिय निवृत्ति कही ? अहो गौतम ! पांच सन्द्रिय निर्वृत्ति कही, श्रोत्रेन्द्रिय निर्वृत्ति यावत् स्पर्शेन्द्रिय निर्वृत्ति. नारकी यावत् स्तनित कुमार को पांचो इन्द्रिय निर्वृचि, पृथ्वीकाया यावत् वनस्पति काया को एक स्पर्शेन्द्रिय निर्वृत्ति ऐसे ही वैमानिक पर्यंत जिस को जितनी इन्द्रियों होवे उस को उतनी इन्द्रिय निर्वृत्ति कहना. ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! भाषा निवृत्ति के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! भाषा निर्वृत्तिके चार भेद कहे हैं, सत्य भाषा निवृत्ति, मृषा भाषा निवृत्ति, सत्य मृषा
भाषा निवृति. ऐसे ही एकेन्द्रिय छोडकर जिन को जितनी भाषाओं होवे उन को उतनी की भाषा निनि वैमानिक पर्यंत कहना..
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी।
भावार्थ