Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२४.५
+ पंचमांक विवाह पम्पति ( भगवती ) सूत्र +8+
जविहो जोगो ॥१६॥ कइविहाणे भंते ! उवआगणिवत्ती ५० ? गोयमा ! दुविहा उबओग णिवत्ती प. तंजहा-सागारोबओगणिवत्ती, अणागारोवओग णिवत्ती, एवं जाव वेमाणिया ॥ १८॥ संगह गाथा-जीवाणं णिवत्ती कम्मप्पगडि णिवत्ती, सरीणिवत्ती, सविदिय णिवत्ती, भासायमणेकसायाया ॥ १ ॥ षण्णे गंधे रसे फासे संठाण विहीय होय बोधब्बे ॥ लस्सादिट्ठीणाणे, उबओगी होय जोगेय ॥२॥ सेवं भंते! भंतेत्ति ॥ एगणवीसइमस्स अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो॥१९॥८॥
कविहाणं भंते ! करणे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे करणे पण्णते तंजहा-दच उतनी कहना ॥ १६ ॥ अहो भगवन ! उपयोग निवृति के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! उपयोग E निवृति के दो भेद कहे हैं साकारोपयोग निवृति व अनाकारोपयोग निर्वृत्ति. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत
कहना ॥१७॥ अब इन की संग्रह गाथा का अर्थ करते हैं. १ जीव निर्वृत्ति २ कर्म निर्वृत्ति, शरीर ४ इन्द्रिय ५ भाषा ६ मन ७ कषाय ८ वर्ण ९ गंध ५० रस ११ स्पर्श ११ संस्थान १३ लेश्या - १.४ दृष्टि १५ मान १६ अज्ञान १७ योग और १८ उपयोग. इन की निवृत्ति. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह उन्नीसवा शतक का आठवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १९॥८॥ . १ आठवे. उदंशे में निर्वत्ति का कथन किया. नवे उद्देशे में करण का अधिकार कहते हैं. अहो भगवन
4862 उबोसवा शतक का नवा उद्देशा-4885
भावार्थ
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