Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमा विवाह पण्णति (भगवती) मूत्र
चउन्विहे, कसाय करणे चउबिहे, समुग्धाय करणे सत्तविहे, सणा करणे चउबिहे, लस्सा करणे छबिहे, दिट्टिकरणे तिविहे, वेदकरणे तिविहे, पं. त• इत्थिवेदकरणे, पुरिसवेद करणे, णपुंसगवेदकरणे ॥ एए सव्वे णेरइयादि दंडगा जाव वेमाणिया जस्स जं अत्थि तं तस्स सव्वं भाणियव्वं ॥४॥ कइविहेणं भंते ! पाणातिवाय करणे प. ? गोयमा ! पंचविहे प० तं० एगिदिय पणाइवायकरणे, जाव पंचिंदिय पाणाइवाय करणे ॥ एवं णिरवसेस जाव वेमाणिया ॥ ५ ॥ कइविहेणं भंते ! पोग्गले
करणे प० ? गोयमा ! पंचविहे पोग्गले करणे प० तं० वण्ण करणे गंध करणे, श्रोत्रेन्द्रिय करण यावत् स्पर्शेन्द्रिय करण. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत जिन को जितनी इन्द्रियों होवे उन को
उतने इन्द्रिय करण कहना. इस तरह सत्य भाषा यावत् असत्य मृषा यों चार भाषा करण. चार मन करण Nis चार कषाय करण, मात समुद्धात करण, चार मंझा करण, छ लेश्या करण, तीन दृष्टि करण तीन वेद
करण. ये सब नारकी आदि चौवीस दंडक में जिल को जितने होवे उस को उतने कहना ॥४॥ भगवन् ! प्राणातिपात करण के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम , प्राणातिपात करण के पांच भेदी कहे हैं. एकेन्द्रिय प्राणातिपात करण यावत् पंचेन्द्रिय प्राणातिपात करण. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत कहना. ॥५॥ अहो भगान् ! पुद्गल करण के कितने भेद कहे हैं.? अहो गोतम ! पुगर करण के पांव भेद
48:0% उबीमवा शतक का नया उद्देशा 488
আদার্থ