Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
विउक्कमंति, चयंति, उववजंति, सासयाणं ते भवणा दव्वट्टयाए वण्णपज्जवेहिं जाव फास पज्जवेहिं असासया || एवं जाव थणियकुमारावासा ॥ ३ ॥ केवइयाणं भंते ! वाणमंतर भोमेजणयरावास सयसहस्सा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेजा वाणमंतरा भोमेजणयरावास सयसहस्सा पण्णत्ता || तेणं भंते ! किं संठिया पण्णत्ता ? सेसं तंचेव ॥ ४ ॥ केवइयाणं भंते! जोइसिय विमाणावास सयसहस्सा पुच्छा ? गोयमा ! असंखेजा जोइसिया || तेणं भंते ! किंमया पण्णत्ता ? गोयमा ! सव्वफलिहमया, अच्छा सेसं तंत्र ॥ ५ ॥ सोहम्मेणं भंते ! कप्पे केवइया विमाणावास सयसहस्सा पण्णत्ता जीवों पुद्गलों उत्पन्न होते हैं, विशेष उत्पन्न होते हैं, चवते हैं व उत्पन्न होते हैं. वे भवन द्रव्य से शाश्वत {हैं और वर्ण पर्याय यावत् स्पर्श पर्याय से अशाश्वत हैं. ऐसे ही स्वनित कुमार तक कहना || ३ || अहो भगवन् ! भूमि में रहे हुवे वाणव्यंतर के कितने नगर कहे हैं? अहो गौतम ! वाणव्यंतर के असंख्यात भूमि के मध्य नगर कहे हैं. अहो भगवन् ! उन का संस्थान कैसा कहा ? अहो गौतम ! शेष सब भवनपति के भवन जैसे कहना ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! ज्योतिषियों के कितने लाख विमान कहे हैं ? ज्योतिषियों के असंख्यात विमान वास कहे हैं. अहो भगवन् ! वे किस के बने हुवे हैं ? वे स्फटिक रत्नों के बने हुबे हैं ॥ ५ ॥ अहो भगवन् ! सौधर्म देवलोक में कितने लाख
अहो गौतम !
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी #
अहो गौतम ! विमान कहे हैं ?}
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