Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
42 अनुवादक-चालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
भंतेत्ति ॥ एगूणवीसइमस्स तइओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ १९ ॥ ३ ॥ सिय भंते ! णेरइया महासवा, महाकिरिया, महावेयणा, महाणिजरा णो इण? सम? ॥ १ ॥ सिय भंते ! गैरइया महासवा महाकिरिया महावेयणा अप्पणिज्जरा ? हंता सिया ॥ २ ॥ सिय भंते ! णेरइया महासवा महाकिरिया
अप्पवेयणा महाणिजरा ? णो इणटे समढे ॥ ३ ॥ सिय भंते ! गैरइया महासवा काया, तेउकाया, व वायुकाया वेदना वेदते हैं. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह उन्नीसवा शतक का तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १९ ॥ ३ ॥ । तीसरे उद्देशे में पृथिव्यादि की महा वेदना कही. यहां नारकी की महा वेदना कहते हैं. अहो भगवन् !
नारकी महा आश्रव वाले, महा क्रिया वाले, महा वेदना वाले व महा निर्जरा वाले हैं? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है ॥ १॥ अहा भगवन् ! क्या नारकी महा आश्रव वाले, महा क्रिया वाले, महा। वेदना वाले, व अल्प निर्जरा वाले हैं. ? हां गौतम ! हैं ॥ २॥ अहो भगवन् ! क्या नारकी महा आश्रय वाले महा क्रिया वाले, अल्प वेदना वाले व महा निर्जरा वाले हैं ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! नारकी महा आश्रा, महा क्रिया. अल्प वेदना व अल्प निर्जरा वाले
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *