Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
किरिया कज्जइ ? हंता अत्थि ॥ सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ अपुट्ठा कज्जइ ? गोयमा पुट्ठाकज्जइ णो अपुट्ठाकज्जइ, एवं जहा पढमसए छहुद्देसए जाव णो अणाणुपुब्बिकड - त्ति वत्तव्वंसिया, एवं जाव वेमाणियाणं णवरं जीवाणं एगिंदियाणय निव्वाघाएणं छद्दिसि वाघायं पडुच्च सियतिदिसिं सिय चउद्दिसिं सिय पंचदिसिं सेसाणं नियमं छद्दिसिं ॥ १ ॥ अत्थिणं भंते! जीवा मुसावाएणं किरिया कज्जइ ? हंता अस्थि || सामंते ! किं पुट्ठाकज्जइ अपुट्ठा कजइ जहा पाणाइवाएणं दंडओ एवं मुसावाएणवि ॥ होती है ? हां गौतम ! जीवों को प्राणातिपात से क्रिया होती है. अहो भगवन् ! वह स्पर्शी हुइ होती ई है या विना स्पर्शी हुई होती है ? अहो गौतम ! स्पर्शी हुई होती है परंतु बिना स्पर्शी हुई नहीं है. वगैरह जैसे प्रथम शतक के छठे उद्देशे में कहा वैसे ही कहना यावत् अनुपूर्विकृत ऐसा कहना. ऐसेही वैमानिक पर्यंत सब दंडक का जानना. परंतु समुच्चय जीव एकेन्द्रिय में निर्व्याघात आश्री छदिशि व्याघात आश्री (काचित् तीन दिशि, चारदिशि काचित् पांवदिशि कहना. और शेष सब को छ दिशि कहना. ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! क्या जीवों को मृषावाद से क्रिया होती है ? हां गौतम ! जीवों को मृपावाद से क्रिया होती है. अहो भगवन् ! क्या वह स्पर्शी हुई होवे या विना स्पर्शी हुइ होवे ? अहो गौतम ! जैसे प्राणातिपात का
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र +4
4 सत्तरहवा शतक का चौथा उद्देशा 99
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