Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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है. जहा एकारसमसए सुदंसणे तहेव णिग्गओ जाव पज्जुवासइ ॥ ६ ॥, तएणं मणि .
सुब्बए अरदा कत्तियस्स सेट्टिस्स धम्मकहा जाव परिसा पडिगया ॥ ७ ॥ तएणं से कत्तिए सेट्ठी मुणिमुव्वयस्स जाव णिसम्म हट्ट तुट्ठ उट्ठाए उढेइ, उढेइत्ता मुणिसु.
०/२३०७ वय जाव एवं वयासी-एवमेयं भंते! जाव से जहेयं तुझे बंदह, जं णवरं देवाणुप्पिया! णेगमट्ठ सहस्सं आपुच्छामि, जेट्टपुत्तं कुडुवे ठावेमि तएणं अहं देवाणुप्पियाणं अं. तियं पव्वयामि ॥८॥ अहासुहं जाव माएडिबंधं ॥ ९ ॥ तएणं से कत्तिए सेट्री जाव
पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमइत्ता जेणेव हत्थिणापुरे णयरे जणेव सए गिहे तेणेव भावार्थ अधिकार कहा वैसे ही अपने गृह से नीकला यावत् पर्युपासना करने लगा ६॥ तत्र मुनिसुव्रत अरिहंतने
कार्तिक श्रेष्ठि को धर्म कथा कही यावत् परिषदा पीछी गइ ॥ ७ ॥ उस समय में मुनि मुव्रत अरिहंत की ।
पास से धर्मकथा सुनकर कार्तिक शेठ बहुत हृष्ट तुष्ट हुवे, अपने स्थान से उठ, और उठकर मुनि सुत्रता + अरिहंत को ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! जैसे आप कहते हैं वैसे ही है. विशेष में अहो देवानुप्रिया For मेरे एक हजार आउ गुमास्ते को पुछकर व ज्येष्ट पुत्र को कुटुम्ब में स्थापकर फीर आप की पास दीक्षा 11 अंगीकार करूंगा ॥ ८॥ अहो देवानुप्रिय! आप को सुख होवे वैसे करो विलम्ब मत करो ॥ ९ ॥ फीर है।
पंचमांग विवाह पस्णत्ति (भगवती) सूत्र
628 अठारहवा शतक का दूसरा उद्देशान