Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
गोयमा ! पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले पुढवीकाइए जाव वणस्सइकाइए सव्वेय बादरबोदिधरा कडेवरा एएणं दुविहा जीवव्वाय अजीवदव्वाय जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छा दंसणसल्ल विवेगे धम्मत्यिकाए अधम्म त्थिकाए जाव परमाणुपोग्गले सेलेसिपडिवण्णए अणगारे एएणं दुविहा जीवदव्वाय अजीवदव्वाय जीवाणं परिभोगत्ताए णो हव्वमागच्छंति; से तेण?णं जाव णो हव्वमा गच्छंति ॥ १ ॥ कइणं भंते ! कसाया पण्णत्ता ? गोयमा! चत्तारि कसाया पण्णत्ता
तंजहा कसायपदं णिरवसेसं भाणियव्वं जाव णिजति लोभेणं ॥ २ ॥ कइणं भंते! बादर शरीर धारन करनेवाले द्विइन्द्रियादिक ये सब जीव द्रव्य व अजीव द्रव्य ऐमे दो भेदवाले । वे जीवों के परिभोग के लिये आते हैं. प्राणातिपात विरमण यावत् मिथ्या दर्शन शल्य का त्याग धर्मा स्तिकाया अधर्मास्तिकाया यावत् परमाणु पुद्गल, शैलेशी प्रतिपन्न अनगार इन के जीव द्रव्य व अजीव द्रव्य ऐसे दो भेद जीव परिभोग के लिये नहीं आते हैं. इस से ऐसा कहा गया है यावत् कितनेक परिभोग के लिये नहीं आते हैं ॥१॥ परिभोग कषायवंत को होता है इसलिये कषाय का स्वरूप कहते हैं. अ भगवन ! कषाय के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम! चार कपाय कही वगैरह कपाय पद कहना यावत्
Pos अठारहवा शतक का चौथा ज द्देशा 988
भावार्थ
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