Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
कइविहेणं भंते ! परिग्गहे ? गोयमा! तिविहे परिग्गहे पण्णत्ते, तंजहा-कम्मपरिग्गहे, सरीरपरिग्गहे, बाहिरभंडमत्तोवगरण परिग्गहे ॥णेरइयाणं भंते ! एवं जहा उबहिणा दो दंडगा भणिया तहेव परिग्गहेणविदो दंडगा भाणियव्वा ॥ ४॥ कइविहाणं भंते ! पणिहाणे पण्णत्ते ? गोयमा ! तिविहे पणिहाणे पण्णत्ते, तंजहा-मणपणिहाणे वइपणिहाणे, कायपणिहाणे ॥ णेरइयाणं भंते ! कइविहे पणिहाणे ? पण्णत्ते एवं चेव, एवं जाव थणियकुमारा ॥ पुढवीकाइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! एगे कायपणिहाणे
पण्णत्ते, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं ॥ वेइंदियाणं पुच्छा ? गोयमा ! दुविहे. गौतम ! परिग्रह के तीन भेद कहे हैं. तद्यथा-१ कर्म परिग्रह२ शरीर परिग्रह और वाह्य भंड पात्र व उपकरण का परिग्रह. अहो भगवन् ! नारकी को कितने परिग्रह हैं ? अहो गौतम ! जैसे उपधि के दो दंडक कहे वैसे ही परिग्रह के दो दंडक कहना. ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! प्रणिधान के कितने भेद कहे हैं ? अहो गोतम! प्रणिधान के तीन भेद कहे हैं तद्यथा-१ मन प्रणिधान,२वचन प्रणिधान, व ३काया प्रणिधान. नारकी यावत स्तनितकुमार को तीनों प्रणिधान कहे हैं :पृथ्वीकाय यावत् वनस्पति काया को एक काया प्रणिधान कहा है ; बेइन्द्रियं तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय को वचन व काया ऐसे दो प्रणिधान हैं. और शेष सब थैमानिक
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहाय नी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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