Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
२३६८
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी+
खंधे वाउयाएणं एवं चेव एवं जाव असंखेज पएसिए ॥अणंत पएसिएणं भंते ! खंधे वाउयाए पुच्छा ? गोयमा ! अणंत पएसिएखंधे वाउयाएणं फुडे वाउयाए अणंत पएसिएणं खंधेणं सिय फुडे सिय णो फुडे ॥ २ ॥ बत्थीणं भंते ! वाउयाएणं फुडे वाउयाए वत्थिणा फुड़े ? गोयमा ! वत्थी वाउयाएणं फुडे णो वाउयाए वत्थिणा फुडे ॥ १३ ॥ अत्थिणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे दव्वाइं वण्णओ काल
णीललोहिय हालिद्द सुकिलाई गंधओ सुब्भिगंधाइ दुब्भिगंधाइं, रसओ तित्त कडुय गौतम ! परमाणु पुद्गल वायुकाया को स्पर्श अर्थात् वायुकाया में परमाणु पुद्गल का समावेश होवे परंतु
युकाया परमाणु को स्पर्श नहीं अर्थात् वायुकाया परमाणु में समावेश होवे नहीं. ऐसे ही द्विपदेशिक स्कंध यावत् असंख्यात प्रदेशिक स्कंध का जानना. अनंत प्रदेशिक स्कंध की पृच्छा ? अनंन प्रदेशिक स्कंध वायुकाया से स्पर्शाया हुवा है और वायुकाया अनंत प्रदेशिक स्कंध से क्वचित् स्पर्शी हुई है काचित् नहीं स्पर्शी हुई है ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! मशक को वायुकाया स्पर्शी हुई है अथवा वायुकायको मशक स्पर्शी हुई है ? अहो गौतम ! वायुकाय से मशक स्पर्शी हुई है परंतु वायुकाय मशक से नहीं | स्पर्शा हुवा है ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी की नीचे वर्ण से काले, हरे, पीले, लाल,
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भाव
4. अनुवादक-बालब्रह्म