Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
-
२३६६
११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
तिणिपलिओवमाइं, एवं जाव थाणयकुमारस्स ॥ ३ ॥ भवियदव्यपुढवी काइयस्सणं पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं सातिरेगाइं दो सागरोबमाई ॥ एवं आउकाइयस्सवि तेऊवाऊ जहा णेरइयरस ॥ वणस्सइ काइयस्स जहा पुढवीकाइयरस ॥ बेइंदियतेइंदियचउरिदियस्स जहा गैरइयस्स ॥ पंचिंदिय तिरिक्खजोणियस्स जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं ॥ एवं मणुस्सावि ॥ वाणमंतर जोइसिय वेमाणियस्स जहा असुरकुमारस्स ॥ सेवं भंते
भंतेत्ति ॥ अट्ठारसमस्स सयरसय नवमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १८ ॥ ९ ॥ मुहूर्त उत्कृष्ट तीन पल्योपप की. ऐसे ही स्तनित कुमार का जानना. ॥ ३ ॥ भविद्रव्य पृथ्वी काया की जघन्य अंत मुहूर्त उत्कृष्ट साधिक दो सागरोपम की, ऐसे दी अप्काया व वनस्पतिकाय के भविद्रव्य की जानना. तेउवायु की नारकी जैसे कहना. बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय का नारकी जैसे कहना. पंचेंद्रिय तिर्यचकी जघन्य अंत मुहूर्त उत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम. ऐसे ही मनुष्य की. वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक की असुरकुमार जैसे कहना. अहो भागवन् ! आप के वचन सत्य हैं. यह अठारहवा शतक का नववा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ १८ ॥९॥
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ
1