Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अव्वएभवं, अवट्ठिएभवं, अणेगभूय भाव भविए भवं ? सोमिला ! एगेवि अहं जाव अणेग भूय भाव भविएवि अहं ॥ से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव भविएवि अहं ? सोमिला ! दव्वट्ठयाए एगे अहं, णाणट्ठयाए दंसणट्ठयाए दुवेवि अहं, पदेसट्टयाए अक्खएवि अहं, अवाट्ठिएवि अहं, उवयोगट्ठयाए अणेग भूय भाव भविएवि अहं, से तेणटेणं जाव भविएवि अहं ॥ ११ ॥ एत्थणं से सोमिले माहणे
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भावार्थ
402 अनुबादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
है यावत् अभक्ष्य है. ॥ ११ ॥ अहो भगवन् ! क्या तुम एक हो, दोहो, अक्षयहो, अव्ययहो, अवस्थितहो या अनेक भूत भाव से भावितहो ? अहो सोमिल ! मैं एक भी हूं यावत् अनेक भूत भाव से भावित हूं. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है कि तुम एक हो यावत् अनेक भाव से भावित हो ? अहो सोमिल ! द्रव्य से मैं एक हूं. ज्ञान व दर्शन से दो हूं, प्रदेश से मैं अक्षय हूं थवस्थित हूं
और उपयोग से अनेक भूत भावित हूं. अहो सोमिल ! इस लिये ऐसा कहा गया है यावत् अनेक भावों से भाबित हूं ॥१.१॥ यहां सोमिल ब्राह्मण को सम्यग् ज्ञान की प्राप्ति हुई-प्रतिबोध पाया॥१२॥ फीर स्कंधक सन्यासी जैसे श्रमण भगवंत महावीर को कहा जैसे तुम कहते हो वैसे ही है ऐसा कहकर आपकी पास इत ईश्वर वगैरह जैसा रायप्रश्नीय में चित्रने कहा यावत् बारह प्रकार के श्रावक व्रत अंगीकार कर श्रमण भगवंत
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी*