Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
-
एवंचेव णवरं उववाओ ठिई उव्वदृणाय जहा पण्णवणाए सेसं तंचेव॥१५॥वाउकाइयाण एवं चेव, णाणत्तं णवरं चत्तारि समुग्घाया।।१५॥ सिय भंते! जाव चत्तारि पंववणस्सइ काइ. या पुच्छा? गोयमा! णो इणटे समटे॥अणंता वणस्सइकाइया एगयो साहारण सरीरं
२३८७ बंधंति २त्ता तओ पच्छा आहारैतिवा परि २ सेसं जहा तेऊकाइयाणं जाव उव्वति, णवर आहारो शियमं छदिसिं, ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं .उक्कोसेणंवि अंतोमुहुत्तं, सेसं तंचेव ॥ १६ ॥ एएसिणं भंते ! पढवीकाइयाणं आऊतेऊ वाऊ वणस्सइ काइयाणं क्वचित यावत् चार पांच तेउकायिक एसे ही विशेष में उपपात, स्थिति व उद्वर्तन पन्नवणा मत्रमें से जानना. शेष पृथ्वी काया जैसे कहना,॥ १४ ॥ वायुकाया का भी तेउकाया जैसे विशेष में चार समुद्धात ॥ १५ ॥अहो है भगवन् ! क्वचित् यावत् चार पांच वनस्पति कायिक जीव एक शरीर के जीव में उत्पन्न होतेहैं क्या ? अहो । गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है. क्यों कि अनंत वनस्पति कायिक जीवों एकत्रित होकर बादर निगोद के साधारण शरीर का बंध करते हैं. सब जीव साधारण शरीरपने एकत्रित परिणमाते हैं. शेष सब
अधिकार उपजने पर्यंत तेजुकाया जैसे कहना. विशेषता इतनी की इन में छ दिशाओं का आहार करे. ॐ क्यों कि बादर होने से लोकान्त पर्यंत नहीं होती है. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त की जानना ॥१६॥ 1- अब इन पृथ्वीकायिकादिक के अवगाहनादिक की अल्पाबहुत्व कहते हैं. अहो भगवन् ! इन पृथ्वीः ।
पंचमांगविवाह पण्णनि (भगवती) सूत्र
उन्नीसवा शतक का
भावार्थ
दशा 488