Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
समुग्धाया पण्णत्ता तंजहा वेदणा समुग्धाए, कसाय समुग्धाए, मारणंतिय समुग्धाए ॥ णं भंते! जीवा मारणंतिय समुग्धाएणं किं सोहया मरंति असमोहया मरंति ? गोयमा ! समोहयाविमरंति, असमोहयावि मरति ॥ ११ ॥ तेणं भंते! जीवा अणंतरं उब्वहित्ता कहिं उववज्जति, एवं जहा उव्वट्टणा जहा वक्कंती ॥ १२ ॥ सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच आउकाइया एगयओ साहारणं सरीरं बंधति तओ पच्छा आहारए एवं जो पुढवी काइयाणं गमो सोचेत्र भाणियव्वो जाव उच्चहंति, णवरं ठिई सत्त वास सहरसाई, उक्कोसेणं सेसं तंत्र ॥ १३ ॥ सिय भंते ! जाव चत्तारि पंच तेउकाइया
अहो भगवन् ! वे जीवों मरणांतिक समुद्धात से मरते हुए क्या समोहया मृत्यु से मरते हैं कि असमोहया { मृत्यु से मरते हैं ? अहो गौतम ! समोहया मृत्यु मरते हैं और असमोहया मृत्यु भी मरते हैं ॥। ११ ॥ अहो भगवन् ! वे जीवों वहांसे चवकर कहां उत्पन्न होते हैं ? ऐसे ही जैसे उद्वर्तनाद्वार कहा वैसे ही यहां भी कहना ॥ ११ ॥ ( यह पृथ्वी काया का कहा. अब अकायाका कहते हैं. अहो भगवन् ! क्वचित यावत् चार पांच अप्कायिक { जीवों एकत्रित होकर साधारण शरीरका क्या बंध करते हैं? पीछे क्या आहार करे? ऐसे ही जो पृथ्वीका या की वक्तव्यता कही वह सब यहां जानना. मात्र स्थितिमें उत्कृष्ट स्थिति सात हजार वर्षकी कहना || १३|| अहो भगवन् !
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
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