Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
18
|२३७९
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 4343
anwarwarwwwwwwwww
संबछे ॥ १२॥ तएणं से समणे भगवं महावीरे जहा खंदओ जाव से जडेयं तुब्भे वदह जहाणं देवाणुप्पियाणं अंतियं बहवे ईसर एवं जहा रायप्पसेणइजे चित्तो जाव दवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जइत्ता समणं भगवं महावीरं बंदह णमंसइ वंदइत्ता णमंसइत्ता जाव पडिगए ॥ १३ ॥ तएणं से सोमिले माहणे समणोवासए जाए अभिगय जाव विहरइ ॥ १४ ॥ भंतेत्ति ! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं बंदइ णमंसइ वंदइत्ता णमंसइत्ता एवं. वयासी-पभणं भंते ! सोमिले माहणे देवाणुप्पियाणं अंते मुंडे भवित्ता जहेव संखे तहेव गिरवसेसं जाव अंतं काहिति ॥ सेवं भंते भंतेत्ति, जाव विहरइ ॥ अट्ठारसमस सयरसय दसमो उद्देसो
॥ १८ ॥ १०॥ सम्मत्तं अट्ठारसमं सयं ॥ १८ ॥ महावीर को वंदना नमस्कार कर यावत् पीछा गया ॥ १२॥ फीर वह सोमिल ब्राह्मण जीवाजीव का स्वरूप जानता हुवा श्रमणोपासक बनकर यावत् विचरने लगा ॥१३॥ अव भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! क्या सोमिल ब्राह्मण आप की पास मुंडित होकर यावत् शंख जैसे सब निरवशेष कहना यावत् अंत करेंगे. अहो भगवन् आपके वचन सत्य हैं. यों कहकर गौतम स्वामी विचरने लगे. यह अठारहवा शतक का दशवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥१८॥१०॥ यह अठारहवा शतक समाप्त हुवा ॥१८॥
अठारहवा शतक का दशवा उद्देशा
wwwwwwww
।
o
4