Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
सरीरं बंधंति २ ता, तओ पच्छा आहारैतिवा परिणामेतिवा सरीरंवा बंधति ॥॥ तेसिणं भंते ! जीवाणं कइलेस्साओ पण्णत्ताओ? गोयमा !. चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ, तंजहा-कण्ह णील काउ तेउ॥२॥तेणं भंते! जीवा किं सम्मट्टिी मिच्छद्दिट्ठी सम्मामिच्छट्ठिी ? गोयमा! मिच्छट्ठिी णो सम्मट्टिी णो सम्मामिच्छद्दिट्ठी ॥ ३ ॥ तेणं भंते ! जीवा किं णाणी अण्णाणी ? गोयमा ! णो णाणी अण्णाणी, नियमा
दुअण्णाणी तंजहा-मइअण्णाणी सुअण्णाणीय ॥ ४ ॥ तेणं भंते ! जीवा किं मणकायिक प्रत्येक अहारवाले व प्रत्येक परिणामवाले हैं इस से प्रत्येक शरीर बांधते हैं. प्रत्येक शरीर बांधकर आहार करते हैं परिणमाते हैं और शरीर बांधते हैं ॥ १ ॥ अब दूसरा लेश्या द्वार कहते हैं:-अहो भगवन् ! उन जीवोंको कितनी लेश्याओं कही ? अहो गौतम चार लेश्याओं कहीं. तद्यथा १ कृष्ण २ नील १३ कापोत और ४ तेजो ॥२॥ तीसरा दृष्टिद्वार कहते हैं:--अहो भगवन् ! वे जीवों क्या समदृष्टिवाले हैं, मिथ्यादृष्टिवाले हैं अथवा सममिथ्यादृष्टिवाले हैं ? अहो गौतम ! मिथ्यादृष्टिवाले हैं परंतु समदृष्टि व सममिथ्यादृष्टिवाले नहीं हैं ॥३॥ अहो भगवन ! क्या वे ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं. अहो गौतम : ज्ञानी नहीं हैं परंतु अज्ञानी हैं. और मति अज्ञान व श्रुत अज्ञान ऐसे दो अज्ञान पाते हैं ॥ ४॥ अहो भगवन् !
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ