Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जोगी, वइजोगी, कायजोगी ? गोयमा ! पो मणजोगी, णो वइजोगी, कायजोगी ॥ ५ ॥ तेणं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता ? गोयमा सागारोवउत्तावि अणागारोवउत्तावि ॥ ६ ॥ तेणं भंते ! जीवा किंमाहारमाहारेंति ? गोयमा ! दव्वओणं अणंत पदेसियाइं दव्वाइं एवं जहा . पण्णवणाए पढमे आहारुद्देसए जाव सव्वप्पणयाए आहारमाहारेति ॥ तेणं भंते ! जीवा जमाहारेंति तंचिजं
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भावार्थ
882 उन्निसवा शतक का तीसरा उद्देशा
48 पंचमांम विवाह पस्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
क्या वे जीवों मनयोगी. वचन योगी व काया योगी हैं ? अहो गौतम ! मनयोगी नहीं है वचन योगी । नहीं है परंतु काया योगी हैं ॥५॥ अहो भगवन् ! क्या वे साकारोपयोगयुक्त हैं या अनाकारोपयोगयुक्त हैं? अहो गौतम ! साकारोपयोगयुक्त व अनाकारोपयोगयुक्त हैं ॥ ६॥ अहो भगवन् ! वे जीव किस का आहार करते हैं ? अहो गौतम ! द्रव्य से अनंत प्रदेशिक द्रव्य के स्कन्ध का ऐसे ही जैसे पनवणा के पाहिले आहार उद्देशे में कहा वैसे ही यहां जानना. यावत् सब प्रकार से आहार करे. अहो भगवन् ! वे जीवों जिस का आहार करते हैं वह इन्द्रिय शरीरपने परिणमता है और जिस का आहार नहीं करते हैं वह इन्द्रिय शरीरपने नहीं परिणमता है और जो परिणमे हुवे पुद्गलों हैं वे क्या मल की तरह विनाश पाते हैं ? हां, गौतम ! वे जीवों जिस का आहार करते हैं. वह इन्द्रिय शरीरपने परिणमता है, जिस का आहार नहीं ।
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