Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जवणिजं अब्बावाहं फासुयविहारं ? सोमिला! जत्ताविमे. जवणिजंपि मे, . अव्वाबाहंपि मे, फासुयविहारंपि मे ॥ ७ ॥ किं ते भंते ! जत्ता ? सोमिला ! जं मे तव णियम-संजय-सज्झाय-झाण-आवस्सगमाीदएसु जोगेसु जयणा सेतं जत्ता ॥
२३७२ किं ते भंते ! जवणिज? सोमिला ! जवणिजे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-इंदिय जवणिजेय जोइंदिय जवणिज्जेय ॥ से किंतं इंदियजवणिजे ? इंदिय जवणिज्जे-जेइमे सोइंदिय चक्खिदिय घाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाई-णिरूवहयाइं वासेवटंति, सेतं इंदियजवणिजे॥
सेकिंतं णोइंदिय जवणिजे ? णोइंदिय जवणिजे जं मे कोह-माण-माया-लोभा-वोच्छिण्णा कि अहो भगवन् ! तुम को यात्रा कौनसी है ? अहो सोमिल ! बारह भेद से तप, तद्विषय अभिग्रह सो नियम, सतरह भेद से संयम, स्वाध्याय, वैय्यावृत्यादि, छ आवश्यक, सामायिकादिक योग में प्रवृत्ति । करना सो यात्रा है. अहो भगवन् ! तुमारे मत में यापनीय (यज्ञ) किसे कहते हैं? अहो सोमिल! यापनीय के
भेद कहे हैं इन्द्रिय यापनीय व नोइन्द्रिय [मन ] यापनीय. इन्द्रिय यापनीय किसे कहते हैं ? श्रोत्र/न्द्रिय, चाइन्द्रिय, घाणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय व स्पर्शेन्द्रिय में उपघात रहित अपने वश में रखे उसे इन्द्रिय यापनीय कहते हैं. नोइन्द्रिय यापनीय उसे कहते हैं कि जो क्रोध, मान, माया व लोभ इन का मूल ।
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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