Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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'णो उदीरेंति सेतंणो इंदिय जवणिज्जे। सेतं जवाणिजे।।से किंते भंते! अव्वाबाहं ? सोमिला !
जं मे वातिय पितिय संभिय सण्णिवाइय विविहरोगायंका सरीरगया दोसा उवसंता णो उदीरेंति, सेतं अव्वाबाहं ॥ किंते भंते ! फासुयविहारं ? सोमिला ! ज णं आरामेसु उज्जाणेसु देवकुलेसु सभासु इत्थीपसुपंडगवज्जियासु वसहीसु फासुएसणिजं पीढ फलग सेजा संथारगं उवसंपजित्ताणं विहरामि, सेतं फासुयविहारं ॥ ८ ॥ सरिसवा
ते भंते ! किं भक्खेया अभक्खेया ? सोमिला ! सरिसवा भक्खेयावि अभक्खेयावि॥ भावार्थ सहित नाश करना. पुनः उदय भाव को प्राप्त न होना वह नोइन्द्रिय यापनीय कहा है. अहो भगवन्
अव्यावाध किसे कहते हैं ? अहो सामिल ! वात, पीत, कफ, सन्निपात वगैरह शरीर में विविध रोगों रहे हुवे है उन का उपशांत होना और उदीरणा नहीं होना सो अव्यायाध. अहो भगवन् ! फ्रामुकविहार किसे कहते हैं ? अहो सोमिल ! जो आराम उद्यान
देवालय, सभा, पर्वत, वगैरह में स्त्री पशू पंडग रहित वसति में फ्रासुक एषणिक पीठ, वाजोट, पटिया, * शैय्या व संथारा प्राप्त कर के विचरते हैं वह फ्रामुक विहार है. ॥ ८ ॥ अहो भगवन् ! आप के मत 12 में सरिसन भक्ष्य है या अभक्ष्य है ? अहो सोमिल ! हमारे मत में सरिसव भक्ष्य भी है और अभक्ष्य ।।
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 438
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अठारहवा शतक का दसवा उद्देशा 9882