Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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4. अनुवादक-वालनागरी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 2.5
सणिज्जा तेणं समणाणं णिग्गंथाणं अभक्खेया ॥ तत्थणं जे ते एसणिज्जा ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-जातियाय अजातियाय ॥ तत्थणं जे ते अजाइया तेणं समणाणं णिग्गथाणं अभक्खेया ॥ तत्थणं जे ते जाइया ते दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-लहाय अलद्वाय. तत्थणं जे ते अलद्धा तेणं समणाणं णिग्गंथाणं अभक्खया, तत्थणं जे ते लद्धा तेणं समणाणं णिगंथाणं भक्खेया, से तेण?णं सोमिला ! एवं वुच्चइ जाव अभक्खयावि ॥ ९॥ मासा ते भंते ! किं भक्खेया अभक्खेया ? सोमिला ! मासा मे भक्खेयावि अभक्खेयावि, से केणटेणं भंते ! जाव अभक्खेयावि ? से यों को असक्ष्य है और एषणिक के दो भेद याचकरलेना व विना याचेलेना. उस में विना हुवा श्रमण निर्गन्यों को अभक्ष्य है और याचकर लेना जिम के दो भेद प्राप्त और अप्राप्त. उस में जो प्राप्त नहीं हुआ है वह श्रमण निग्रन्थों को अभक्ष्य है और जो प्राप्त हुआ है वह श्रमण निर्ग्रन्थों को भक्ष्य है. अहो सोमिल ! इस कारन से ऐसा कहा गया है कि सरिसब भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है. ॥१॥ पुनः सोमिलने प्रश्न किया कि अहो भगवन् ! आप के मत में क्या मास भक्ष्य है या अभक्ष्य है ? अहो सोमिल ! हमारे मत में मास भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी
अठारहवा शतक का दशवा उद्दशा
भावार्थ
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