Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
खंडियसयाणं सयस्स कुटुंबस्स आहेवच्चं जाव विहरइ ॥ ५ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जुवासइ ॥ ६ ॥ तएणं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पजित्था, एवं खलु समणे णायपुत्ते पुव्वाणुपुत्विं चरमाणे, गामाणुगामं दूइजमाणे सुहंसुहेणं जाव इह मागए जाव दूइपलासए चेइए अहापडिरूवं जाव विहरइ, तंगच्छामिणं समणस्स णायपुत्तस्स अंतियं पाउब्भवामि, इमाई चणं एयारूवाइं अट्ठाई जाव वागरेत्ताई
पुच्छिरसामि, तं जइमे से इमाइं एयारूवाई वागरणाई वागरेहिति तोणं बंदिहामि अपराभूत ऋग्वेद, यजुर्वेद यावत् ब्राह्मण शास्त्रों में सुपरिनिष्ठित था. वह पांच सो शिष्यों व अपने कुटुम्ब का आधिपतिपना करता हुवा विचरता था ॥ ५॥ तब श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी यावत् पधारे यावत् । परिषदा पर्युपासना करने लगी ॥ ६ ॥ जब सोमिल ब्राह्मणने यह कथा सुनी तब उस'को ऐसा अध्यक
साय हुवा कि श्री श्रमण ज्ञात पुत्र ग्रामानुग्राम चलते सुख पूर्वक विचरते यावत् यहां आये हैं यावत् दूतिपलास "उद्यान में यथाप्रतिरूप अवग्रह याचकर विचरते हैं, इस से मैं उनकी पास जाऊं और इन अर्थों यावत्
प्रश्नों को पूछ. यदि मेरे प्रश्नोंके उत्तर देंगे तो मैं उन को बंदना नमस्कार यावत पर्यपासना करूंमा यदि
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ