Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
488+ पंचमांग विवाह पष्णति ( भगवती ) सूत्र 488+
जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता समणं भगवं महावीरं वंदs णमंसइ, णच्चासण्णे जात्र पज्जुवासइ ॥ १० ॥ गोयमादि ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी सुडुणं तुम्हं गोयमा ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी, साहूणं तुमं गोयमा ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी, अत्थिणं गोयमा ! ममं बहवे अंतेवासी समणा णिग्गंथा छउमत्था जेणं णो पभू एयं वागरणं वागरेचए जहाणं तुमं तं सुहूणं तुमं गोयमा ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी, साहूणं तुमं गोयमा ! ते अण्णउत्थिए एवं वयासी ॥ भगवं गोयमे समणेण भगत्रया महावीरेणं एवं वृत्तेसमाणे हट्ट तुटु समणं भगवं और वंदना नमस्कार कर नम्नासन से यात्रत् पर्युपासना करने लगे. ॥ १० ॥ श्रमण भगवंत महावीरने [गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों को ऐसा कहा अहो गौतम ! तुमने अन्यतिथिकों को जो ऐसा उत्तरदिया सो अच्छा किया श्रेष्ठ किया. अहो गौतम ! मेरे बहुत छद्मस्य श्रनग निर्ग्रन्थ हैं कि जो तेरे जैसे उत्तर देने में समर्थ नहीं हैं. इस से तुमने अन्यतीर्थिको जो उत्तरदिया सो अच्छा किया || ११ | जब श्रमण भगवंत महावीर स्वामी ऐसा बोले तब भगवान गौतम हृष्ट तुष्ट हुवे और श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को बंदना
११ ॥ तरणं
अठारहवा शतक का आठवा उद्देशा +2+
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