Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमांगविवार पण्णति (भगवती) सूत्र 4287
पदेसियं ॥३४॥परमाहोहिएणं भंते ! मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणइ त समयं पासइ, जं समयं पासइ तं समयं जाणइ ? णो इणटे समटे ॥ से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ परमाहोहिएणं मणूसे परमाणुपोग्गलं जं समयं जाणइ को तं समय पासइ, जं समयं पासइ णो त समयं जाणइ ? गोयमा ! सागारेसे गाणे भवइ, अणागारेसे दसणे भवइ से तेणटेणं जाक णो तं समयं जाणइ, एवं जाव अणंत पएसियं ॥ १५ ॥ केवलीणं भंते ! मणूसे जहा परमाहोहिए तहा केवलीवि, जाव
अणंतपएसियं ॥ सवं भंते भंतेत्ति ॥ अट्ठारसम्मस्स अट्ठमो उद्देसो ॥ १८ ॥ ८ ॥ परमाण पुद्गल जाने देखे?अहो गौतम! जैसे व्यस्थका कह्म वैसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध पर्यंत कहना॥१४॥ अहो भगवन् ! परम अवधिज्ञान वाला मनुष्य परमाणु पुद्गल को जिस समय जानते हैं उस ही समय क्या देखते हैं, जिस समय देखते है उस ही समय क्या जानते हैं? अहो गौतमः यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवर किस कारन से यह अर्थ योग्य नहीं है?अहो गौतमज्ञान साकार है और दर्शन अनाकार है इस से जिस समय में में जाने उस समय में देखे नहीं और जिस समय में देख उस समय में जाने नहीं ऐसे ही अनंत प्रदेशिक स्कंध तक 4 करना.॥१५॥अहो भगवन्! केवली मनुष्य वगैरह जैसे परम अवधिज्ञानीका कहा वैसे ही केवली का कहना यावत् र नंत प्रदेशिक. अहोभगवन्! आपके वचन सत्यहँ यह अठारहवा शतकका आठवा उद्देशा संपूर्ण ॥२०॥
18+ अठारहवा शतक का आठवा उद्देशा 40
भावाथ
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