Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
42 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
महावीर वंदइ णमंसइ वंदइत्ता णमंसइत्ता एवं वयासी-छउमत्थेणं भंते ! मणसे परमाणुपोग्गलं किं जाणइ पासइ उदाहु नजाणइ नपासइ ? गोयमा ! अत्थेगइए जाणइ पासइ, अत्थेगइए णजाणइ णपासइ ॥ १२ ॥ छउमत्थेणं भंते ! दुपदेसियं खधं किं जाणइ पासइ ? एवं चेव ॥ एवं जाव असंखेज पएसियं ॥ छउमत्थेणं भंते ! मणुस्से अणंतपएसियं खंधं किं पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइए जाणइ पासइ, अत्थेगइए जाणइ णपासइ, अत्येगइए जाणइ पासइ, अत्थेगइए जाणइ णपासइ
॥ १३ ॥ आहोहिएणं मणुस्से परमाणु जहा छउमत्थे, एवं आहोहिएवि जाव अणंत नमस्कार कर ऐसा बोले अहो भगवन् ! छद्मस्थ मनुष्य क्या परमाणु पुटूल जानते देखते हैं ? अथवा जानते नहीं देखते नहीं हैं ? अहो गौतम ! कितनेक जानते हैं देखते हैं और कितनेक नहीं जानते हैं नहीं देखते हैं ॥१२॥ अहो भगवन् ! क्या छमस्थ द्विपदेशिक स्कंध जाने देखे! अहो गौतम ! वैसे ही जानना. ऐसे असंख्यात प्रदेशी स्कंध का कहना. अहो भगवन् ! छमस्थ मनुष्य क्या अनंत प्रदेशी स्कंध जाने देखे ? अहो गौतम ! कितनेक आने देखे और कितनेक जाने परंतु देखे नहीं, कितनेक जाने नहीं परं खे, कितनेक जाने नहीं व देखे नहीं ऐसे चार भांगे होवे. ॥१३॥ अल्प अवधि ज्ञानी, मनुष्य
wwwmummm
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
क्या