Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जाव णो उद्दवेमो, तएणं अम्हे पाणे अपेच्चमाणा जाव अणाहवेमाणा तिविहं तिविहेर्ण जाव एगत पंडियावि जाव भवामो ॥ तुब्भेणं अज्जो ! अप्पणो चेव तिविहं तिविहेणं जाव एतबालायावि भवह, ॥ ८ ॥ तएणं ते अण्णउत्थिया भगवं गोयमं एवं वयासी केणं कारणेणं अजो! अम्हे तिविहं जाव विभवामो ? ॥ तएणं भगवं गोयमे ते अण्णउत्थिए एवं वयासी-तुब्भेणं अनो ! रीयं रीयमाणा पाणे पेञ्चेह जाव उद्दवेह, तएणं तुब्भे पाणे पेच्चमाणा जाव उद्दवेमाणा लिविहं जाब एगंत बालायावि
भवह ॥ ९ ॥ तएणं भगवं गोयमे ते अण्णउत्थिए एवं पडिटणइ पडिहणइत्ता तीन करन तीन योग से हम एकांत पंडित हैं. परंतु अहो आर्यों ! तुम स्वतः ही तीन करन तीन योगसे एकांत बाल हो ॥ ८॥ तब अन्यतीर्थिक भगवंत गौतम को ऐसा बोले अहो आर्य ! किस कारन से हम तीन करन तीन योग से यावत् एकांत बाल हैं ? तब भगवान् गौतमने उन अन्य तीथिकों को । कहा अहो आर्यो! तुम चलते हुए प्राणियों को अतिक्रमते हो यावत् उपद्रव करते हो. इस तरह प्राणियोंको अतिक्रमते यावत् उपद्रव करते तीन करन तीन योग से यावत् एकांत बाल हो ॥९॥ इस तरह अन्यतिर्थकों का प्रतिघात करके भगवान गौतम श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पासे आये।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ