Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एवं जहा अट्टमस तइय उद्देसए जाव णो खलु तत्थ सत्थं कमइ ॥ २० ॥ अत्थिणं भंते! देवा असुरा संगामा देवा असुरा ? हंता अस्थि || देवासुरेणं भंते! संगामे व माणेसु किंणं तेसिं देवाणं पहरणरयणत्ताए. परिणमंति ? गोयमा ! जंणं ते देवा तणवा, कटुंबा, पत्तंवा, सक्करंवा, परामुसंति तंणं तेसिणं देवाणं पहरणरयत्ता परिणमति ॥ जहेव देवाणं तहेव असुरकुमाराणं ? णो इणट्ठे समट्ठे || असुर कुमाराणं देवाणं णिचं विउब्विया पहरणरयणा पण्णत्ता ॥ २१ ॥ देवेणं भंते ! महिड्डीए जाब महेसक्खे पभू लवणसमुहं अणुपरियहित्ताणं हव्वमागच्छित्तए ? हंता { ॥ १९ ॥ अहो भगवन् ! पुरुष बीच में हस्त पत्र वगैरह जैसे आठवे शतक के तीसरे उदेशे में कहा वैसे ही यहां जानना ॥२०॥ अहो भगवन् ! देव व 'असुर में क्या संग्राम होता है? हां गौतम! देव व असुर में संग्राम होता है. अहो भगवन् ! देव व असुर के होते हुवे संग्राम में प्रहाररत्न ( शस्त्रपने ) क्या परिणमता है ? अहो गौतम ! देव जो तृण, काष्ट, पत्र व कंकर डालते हैं, वे उन देवोंको महाररत्नपने परि ( णमते हैं. जैसे देवों का कहा वैसे ही असुरकुमार का क्या जानना ? अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं क्यों की असुरकुमार को सदैव वैक्रेयवाला प्रहार रत्न होता है. ॥ २१ ॥ अहो भगवन् ! महर्द्धिक
* प्रकाशक- राजीवहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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