Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ ।
488+ पंचमाङ्ग विवाद पण्णति ( भगवती ) सूत्र
एवा परियावज्जेजा, तस्सणं भंते ! किं इरियावहिया किरिया कज्जइ, संपराइया किरिया कज्जइ ? गोयमा ! अणगारस्सणं भावियप्पणो जाव तरसणं इरियावहिया किरिया कज्जइ, जो संपराइया किरिया कज्जइ ॥ से केणट्टेणं भंते ! एवं बुवइ ? जहा सत्तमसए संबुडुद्देसए जाव अट्ठो णिखित्तो ॥ सेवं भंते ! ॥ १ ॥ तणं समणे भगवं महावीरे जाव विहरइ ॥ २ ॥
भंतेति ॥ जाब विहरइ
तेणं कालेणं तेणं
अनगारं को
अहो भगवन् ! युग प्रमाण [ चार हाथ ] भूमि देखकर चलते हुवे मावितात्मा अनगार के पांव नीचे कोई मुर्गी के बच्चे, बटेर के बच्चे, व कीडियों के बच्चे परितापना पावे तो उस क्या ईर्यापथिक क्रिया होवे या संपराधिक क्रिया होवे ? अहो गौतम ! युगप्रमाण भूमि आगे देखते हुवे भावितात्मा अनगार के पांच की नीचे कोई मुर्गी के बच्चे, बंटर के बच्चे, व कीडियों के बच्चे परितापना पात्रे तो उन अनगार को ईर्यापथिक क्रिया होवे परंतु संपरायिक क्रिया होवे नहीं. अहो भगवन् ऐसा किस कारन से कहा गया है ? अहो गौतम ! जैसे सातवे शतक में संवृत उद्देशे में कहा वैसे ही यहां जानना यावत् कषाय विच्छेद होने से ईर्ष्या पथिक क्रिया लगे. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यावत् विचरने लगे ॥ १ ॥ फीर श्रमण भगवंत भी विचरने लगे ॥ २ ॥ उस काल उस समय में
** अठारहवा शतक का आठवा उद्देशा 498
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