Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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देवा अणते कम्मसे पंचहिं वाससयसहस्सेहिं खवयंति ; एएणं गोयमा ! ते देवा जे अणते कम्मंसे जहण्णेणं एक्केणवा दोहिंवा तिहिंवा, उक्कोसेणं पंचहिं वाससएहिं खवयंति. एएणं गोयमा ! ते देवा जाव पंचहिं वाससहस्सेहिं खवयंति ॥ एएणं गोयमा ! ते देवा जाव पंचहिं वाससयसहस्सेहिं खवयंति ॥ सेवं भंते ! भंतेति ॥ अट्ठारसमस सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ १८ ॥ ७ ॥ . रायगिहे जाव एवं वयासी-अणगारस्सणं भंते ! भावियप्पाणो पुरओ दुहओ
मायाए पेहाए रीयं रीयमाणस्स पायस्स अहे कुछाड पोतेवा, वडापातेवा, कलिंगच्छाभावार्थ प्रसिद्ध विमान के देव पांच हजार वर्ष में अनंत कांश खपावे. अहो गौतम ! इमीमे देखें अनंत कौश
जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट पांच सो वर्ष में खपाते हैं. इस से अहो गौतम ! जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट : पांच हमार वर्ष में कर्म खपावे और इस से ही अहों गौतम ! जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट पांच लाख वर्ष में कर्म खपावे. अहो भगवन् ! आपकं वचन सत्य हैं. यह अठारहवा शनकका सातवा उद्देशा पूर्ण हवा ॥१८॥७॥
सातवे उद्देश में कर्मक्षय करने का कहा. इस उद्देशे में कर्मबंध का कहते हैं. राजगृही नगरी के , 14 गुणशील उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार श्री गौतम स्वामी ऐमा बोले।
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाचहादुर लाला मुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी.