Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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मंडुया! जाव एवं वयासी॥१५॥तएणं मंडुए समणोवासए समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ट तुढे समणे भगवं महावीरे मंडुयस्स समणोवासगस्स तीसेय जाव परिसा पडिगया ॥ १६ ॥ तएणं मंडुए समणोबासए समणस्स भगवओ महावीरस्स जाब णिसम्म हट्ठ तुटे पसिणाई पुच्छइ, पुच्छइत्ता अट्ठाइं परियाति २त्ता, समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदइत्ता णभंसइत्ता जाव पडिगए ॥ १७ ॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदई णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता एवं
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी *
वार्थ
अच्छा किया. ॥ १५ ॥ जब श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने मंडुक श्रमणोपासक को ऐसा कहा तव मंडुक हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुवा और मंडुक श्रमणोपासक को उस महती परिषदा में महावीर स्वामीने
यावत् परिषदा पीछी गइ. ॥ १६ ॥ फीर मंडक श्रमणोपासकने श्रमण भगवंत महावीर को यावत् अवधार कर हृष्ट तुष्ट हुवा और प्रश्नों पुछकर उसे ग्रहण कर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर यावत् पीछा गया. ॥ १७॥ भगवान गौतम स्वामी श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर ऐसा बोले कि अहो भगवन् ! मंडुक श्रमणोपामक आपकी पास यावत् मुंडित होने को क्या समर्थ है ? अहो गौतम : यह अर्थ योग्य नहीं है. यहां जैसे शंख का कहाथा वैसे ही.
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